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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘बच्चे की पेट में ही मृत्यु हो सकती है। यही ऐना के हुआ था।’’
इससे टिमोथी को बहुत चिन्ता लग गयी। रजनी ने उसका हृदय, रक्तचाप और आँख तथा जिह्ना आदि देखीं। देखकर उसने अपने अनुमान का समर्थन कर दिया कि लक्षण तो अलब्यूमनोरिया के हैं।
इस समय मिस्टर बैस्टन आ गये। टिमोथी ने रजनी का परिचय करा दिया और कहा कि वह कहती है कि मुझको अलब्यूमनोरिया हो रहा है। इससे बच्चा पेट में खत्म हो सकता है।
‘‘तो?’’ बैस्टन का प्रश्न था।
‘‘इसके पेशाब का टैस्ट होना चाहिए।’’ रजनी ने कहा, ‘‘उसकी रिपोर्ट पर ही मैं तजवीज कर सकती हूँ।’’
‘‘तो आप कल आयेंगी?’’
‘‘हाँ, आप पेशाब कि रिपोर्ट ला रखिएगा।’’
रजनी गयी तो अपने पीछे चिन्ता का वातावरण छोड़ गयी। बैस्टन ने अपने दफ्तर से छुट्टी ले ली और टिमोथी का पेशाब लेकर एक पैथालोजिस्ट के पास चला गया।
अगले दिन रजनी आयी तो बैस्टन उसको कोठी के द्वार पर ही मिल गया। वहीं रोककर कहने लगा, ‘‘डॉक्टर! आपका अनुमान ठीक है?’’
उसके पेशाब में तीन ‘प्लस’ अलब्यूमन है। अब क्या होगा?’’
‘‘मैं दवाई लिख देती हूँ। वह इसको पिलाइये। अभी मैं बच्चे की हालत देख लूँ। उसके लिये भी कुछ तो बता सकती हूँ।’’
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