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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इस पर बैस्टन रजनी को टिमोथी के कमरे में ले गया। वह रो रही थी। रजनी ने पूछ लिया, ‘‘क्यों? क्या बात है? रो क्यों रही हो?’’

‘‘जब से यह पेशाब की रिपोर्ट लाये हैं मुझको पेट में बच्चा घूमता अनुभव नहीं होता। क्या जाने वह...।’’

कहते-कहते वह सिसकियाँ भरने लगी। रजनी उसके समीप बैठ उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘यह तुम्हारा भ्रम भी तो हो सकता है। आओ, पलंग पर लेट जाओ। मुझको एग्जामिन’ करने दो।’’

बहुत कठिनाई से रजनी ने उसको चुप कराया और पश्चात् उसे लिटाकर बच्चे की परीक्षा की। उसकी भी नाड़ी-परीक्षा की। हृदय की गति देखी और फेफड़े आदि देखे और कहा, ‘‘अभी कोई चिन्ता की बात नहीं। बच्चा ठीक है। तुम भी भली-भाँति हो। ऐसा प्रतीत होता है कि यह अलब्यूमन अभी-अभी आने लगा है।’’

कुछ देर सोचकर रजनी ने कहा, ‘‘मैं दवाई लिखकर दिये जा रही हूँ। इसको मँगवाकर पीना। तीन दिन पश्चात् मैं फिर आऊँगी। आशा करती हूँ कि सब ठीक हो जायेगा।’’

रजनी प्रति तीसरे दिन टिमोथी को देखने के लिये आती रही और उसकी चिकित्सा करती रही। एक दिन उसने कह दिया, ‘‘तुरन्त हस्पताल चलना चाहिये। एक-दो घण्टे में बच्चा होने वाला है।’’

टिमोथी के लड़का हुआ। लड़के के होने पर वह बहुत प्रसन्न थी। वैसे वह दुर्बल हो गयी थी, इस पर भी उसको किसी प्रकार का विशेष कष्ट नहीं हुआ था।

छठे दिन टिमोथी हस्पताल से घर आ गयी। उस दिन रजनी उसे मिलने गयी तो ऐना, अनवर, बैस्टन, बैस्टन की बहन, जो कलकत्ता से विशेष बुलाई गयी थी।, साथ ही एक-दो अन्य मित्र बैठे थे। टिमोथी दुर्बल होने पर भी बहुत प्रसन्न थी और खाना-पीना हो रहा था।

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