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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


रजनी को बहुत मान से बिठाया गया। बैस्टन ने उसका बहुत ही धन्यवाद किया और टिमोथी ने ऐना से कहा, ‘‘ऐना! तुमने मुझको रजनी के विषय में बताकर बहुत ही उपकार किया है। पहली डॉक्टर मिस कलावती तो समझ ही नहीं सकी थी कि पाँव में सूजन क्यों है। वह मालिश के लिये एक लोशन और कुछ गोलियाँ दे गयी थी। उसका कुछ प्रभाव नहीं हो रहा था। रजनी आयी तो इसने देखते ही रोग बता दिया और फिर पेशाब टैस्ट करवाकर दवाई लिख दी। तीन ही दिन में सूजन उतर गयी थी। और देखो।’’ उसने समीप खटोले में पड़े हुए बच्चे की ओर देखकर कहा, ‘‘इस मास्टर बैस्टन की जान बच गयी है।’’

ऐना को अपने बच्चे की याद आ गयी थी। वह विचार करने लगी कि यदि रजनी उस समय डॉक्टर बन चुकी होती तो वह भी बच सकता था। इस पर भी उसने कुछ कहा नहीं।

रजनी को भी चाय का प्याला और मिठाई की प्लेट दे दी गई। उसने एक टुकड़ा मिठाई का और चाय का प्याला ले लिया। चाय पीने के पश्चात् उसने सोये हुए बच्चे को देखा, टिमोथी को भी देखा और एक टॉनिक लिखकर दे दी। वह वहाँ से जाने के लिये उठी ही थी कि डॉक्टर कलावती वहाँ आ पहुँची। टिमोथी ने उसका परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह हैं डॉक्टर कलावती। यह आरम्भ से ही मेरी देखभाल करती रही हैं।’’

‘‘मिसेज टिमोथी! आपने बताया भी नहीं कि कब हस्पताल गयीं और कब आयी हैं। मैं एक दिन आयी तो पता चला कि आप हस्पताल में नहीं हैं। आज पता चला कि आप आ गयी हैं।’’

रजनी चुपचाप बैठी रही। उसने अपने को प्रकट करने की कोई आवश्यकता नहीं समझी। टिमोथी ने उसका परिचय कराना चाहा तो रजनी ने होठों पर उँगली रखकर उसको मना कर दिया।

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