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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


कलावती ने बच्चे को देखा, बच्चे की माँ को देखा और दोनों को सर्वथा स्वस्थ देख एक टॉनिक लिखकर दे दी। इस समय टिमोथी से नहीं रहा गया। उसने रजनी का लिखा नुस्खा दिखाकर पूछ लिया, ‘‘डॉक्टर! यह कैसा रहेगा?’’

रजनी यह भी नहीं चाहती थी। इस पर भी जब दिखा दिया गया तो चुप ही मुस्कराती रही। कलावती ने दवा पढ़ने से पहले फार्म पर छपा हुआ नाम पढ़ा और कह दिया, ‘‘कोई नौसिखिया मालूम होती है।’’

‘‘मैं तो औषधि के विषय में पूछ रही हूँ, डॉक्टर!’’

‘‘उसी के विषय में कह रही हूँ। इसके हाथ में किस तरह पड़ गयी हो तुम? यह तो अपना अभ्यास बढ़ाने के लिये गरीबों की बस्तियों में फ्री काम कर रही है।’’

ऐना को कलावती की इन बातों पर क्रोध आ रहा था। उसने कह दिया, ‘‘यह है वह, जिसकी आप तारीफ कर रही हैं। यह मेरी और टिमोथी की सहपाठिन है। यह ठीक है कि इसने इसी वर्ष परीक्षा पास की है, परन्तु इसको हस्पताल में नौकरी मिलती थी और इसने नहीं की।’’

कलावती, जिस ढंग से रजनी का नाम पढ़कर उस पर व्यंग कस रही थी, रजनी को चुपचाप बैठे देख, लज्जित हो गयी। वह कुछ देर तक तो रजनी का मुँह देखती रही, फिर बोली, ‘‘देखिये, आपको अभी किसी डॉक्टर के साथ कुछ दिन कार्य करना चाहिये।’’

‘‘कर रही हूँ। गणेशगंज में एक वैद्य, मिश्रजी, हैं। वे मुझको कठिन रोगों में सहायता देते रहते हैं।’’

‘‘छीः! छीः!! क्या कह रही हैं मिसेज रजनी! यह अशिक्षिता भला क्या तुमको बताता होगा? जो कुछ लिखा-पढ़ा है, वह भी आप भूल जाएँगी।’’

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