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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘तो आप मेरी सहायता कर दीजिये। देखिये, मोती बाग में एक बहुत बड़ी मजदूरों और कुलियों की बस्ती है। मैं वहाँ जाया करती हूँ। वे बेचारे कुछ दे नहीं सकते। दवा भी उनको मुफ्त ही देनी पड़ती है। आप भी कभी मेरे साथ चला कीजिये। मिश्राजी तो, जब भी मैं कहती हूँ, तुरन्त तैयार हो जाते हैं। वह अपने पास से फ्री दवा भी देते हैं।’’
कलावती ने कह दिया, ‘‘मेरे पास तो इतना समय नहीं। रही दवा की बात। वह तो आपको पता ही है कि डॉक्टर वैद्यों की तरह दवाइयाँ घर पर नहीं बना लेते हैं।’’
रजनी चुप रही। उसने कलावती से बहस करना अच्छा न समझा। इतने में कलावती उठकर साथ के कमरे में बैस्टन को ले गयी। रजनी ने इस समय जाना ठीक समझ ऐना और टिमोथी से कहा, ‘‘तो अब मैं चलती हूँ। एक सप्ताह तक आ सकूँगी।’’
रजनी बाहर निकली तो कलावती नोटों का एक बंडल लिये बैस्टन के कमरे से बाहर आयी और रजनी के साथ हो ली। रजनी इक्के में वहाँ आयी थी। कलावती अपनी मोटर में थी।
कलावती ने अपना प्रभाव रजनी पर जमाने के भाव से कह दिया, ‘‘किधर जा रही हैं आप?’’
‘‘मैं गोमती रोड पर अपने घर जाऊँगी।’’
‘‘आइये। मैं भी उधर ही जा रही हूँ। मैं आपको छोड़ दूँगी।’’
रजनी मुस्कराई और इक्के वाले को आने-जाने का भाड़ा देकर विदा करने लगी। कलावती ने ड्राइवर के स्थान बैठकर, उसके लिये समीप बैठने के लिये सामने वाला द्वार खोल दिया।
रजनी उसके पास कार में जा बैठी। कलावती ने अभी भी हाथ में रुपये पकड़े हुए थे। उसने रजनी से कहा, ‘‘यह तीन सो बीस रुपये हैं। यह मेरा दो महीने का बिल है आपका कितना बिल बना है?’’
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