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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘रजनी ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘मैं उधार पर काम नहीं करती। मैं तो तुरन्त मजदूरी में विश्वास रखती हूँ।’’

‘‘क्या फीस लेती हैं?’’

‘‘हार्दिक धन्यवाद।’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि यदि किसी की सेवा कर सकती हूँ तो उससे धन्यवाद की आशा करती हूँ।’’

‘‘इसका अर्थ यह हुआ कि आप अपने हम-शा वालों की कीमत मार्किट में कम कर रही हैं?’’

‘‘मैं अपने विचार से कीमत बढ़ा रही हूँ। देखिये डॉक्टर साहिबा! जब वैद्यजी किसी रोगी को देखने के लिये चल पड़ते हैं तो मैं उनका मान करते नहीं थकती। आपके विषय में तो यह समझती हूँ कि आप एक बहुत बड़ी मजदूरी लेने वाली कुली-मात्र हैं।’’

कलावती ने घूरकर रजनी की ओर देखा। वह उसको दो-चार जली-कटी सुनाना चाहती थी, परन्तु उनको शान्त मुस्कराते देख अपने को संयम में कर कहने लगी, ‘‘आप मुझको कुछ पागल मालूम होती हैं? डॉक्टरी की पढ़ाई में दस-पन्द्रह हजार के लगभग खर्च हो जाता है। इतना धन और बहूमूल्य जीवन के पाँच वर्ष व्यय करने पर हम बिना कुछ लिये जूते घिसाने के लिए नहीं हैं। किसकी लड़की हैं आप?’’

‘‘राय साहब रमेशचन्द्र सिन्हा की।’’

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