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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


 ‘‘मैंने कानपुर वाली लड़की देखी है।’ उसने कहा–‘वह राधा की तुलना में कम सुन्दर है। इसलिए उनका पन्द्रह हजार राधा के पिता के पाँच हजार के समान समझता हूँ।’

‘‘इस बात को हुए लगभग बीस दिन हो चुके हैं। इस काल में मैं आपको कई बार पत्र लिखने बैठी, परन्तु लिख न पायी। मैं यही विचार करती रही कि किस मुख से लिखूँ तथा क्या लिखूँ? मैं तो आपके सामने शिवकुमार की प्रशंसा कर चुकी हूँ। अब ये बातें बताने से लज्जा अनुभव करती थी।

‘‘आज रजनी आयी और उसने मुझको पत्र लिखने का प्रोत्साहन दिया है। यह कह रही है कि यह आपके घर दुरैया जा रही है। इसलिए यह पत्र लिखकर उनको दे रही हूँ।’’

रामाधार ने कहा, ‘‘रजनी! राधा बिटिया ठीक ही कहती थी कि ये वैश्य-वृत्ति के लोग एक ब्राह्मण-कन्या के योग्य नहीं हैं।’’

रजनी ने अपना मत व्यक्त कर दिया, ‘‘दहेज देने का प्रश्न तो आप निश्चय करिये। आपने कुछ देना है अथवा नहीं, यह आपकी निश्चय करने की बात है। इसमें मैं आपको कुछ नहीं कहूँगी। मैं यह समझती हूँ कि शिवकुमार का भी यह अधिकार नहीं कि वह आपसे कुछ भी माँगे। आप इस अनाधिकारी को लिख दें कि वह कानपुर वाली से विवाह कर ले।’’

‘‘यह तो ठीक ही है। परन्तु बेटी! राधा का भी उद्धार तो करना ही है।’’

‘‘तो राधा क्या किसी मुसीबत में फँसी हुई है? देखिये काका! मेरा विवाह तेईस वर्ष की आयु में हुआ है। राधा तो अभी सत्रह वर्ष की ही है।’’

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