लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘मैंने बटनों की एक सैट मशीन पर साढ़े पाँच हजार रुपया खर्च किया है। यदि एक सैट और खरीदने के लिए रुपया मिल जाए तो आय दुगुनी हो जायेगी। इस प्रकार यदि पत्नी घर पर आयेगी तो अपने खर्चे का साधन साथ लायेगी।’

मैंने कहा भी कि वह जो कहता है कि उसके पास बैंक में एक लाख रुपया जमा हो गया है, उसमें से मशीन लगा सकता है?’

‘‘शिवकुमार ने कह दिया, ‘राधा के निमित्त मशीन तो उसके पिता के दिये धन से ही लग सकती है। इस अपने रुपये से मैं कुछ और काम करना चाहता हूँ।’’

‘‘जीजाजी! शिवकुमार की ये बातें सुनकर मैंने शर्मिष्ठा देवी से पूछ लिया, ‘‘आप इस विषय में क्या कहती हैं?’’

‘‘उनका कहना था–‘‘मैं इसको शिवकुमार की नालायकी समझती हूँ। शेष पिता और पुत्र देने वाले और लेने वाले जानें। मैं भला इसमें क्या कह सकती हूँ।’’

‘‘मैंने मौसीजी से भी बात की है। उन्होंने कह दिया, शिवकुमार का कानपुर से एक रिश्ता आ रहा है। कानपुर ने दस हजार नकद और पाँच हजार का सामान देने की बात कही है। तब से ही शिवकुमार मुझको दुरैया पत्र लिखने के लिये कह रहा है। मैं टालमटोल कर रही थी। आज तुम आ गयी हो। उसके विचार जान लिये हैं। अब तुम जो उचित बात है उनको लिख दो। मुझको बीच में मत लाओ।’

‘‘इस पर मैंने शिवकुमार से पूछ लिया, ‘‘तो पाँच हजार लिख दूँ, अथवा दस या पन्द्रह हजार?’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book