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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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राधा को एक बात समझ आयी। पति-पत्नी सर्वथा समान गुण-कर्म वाले हों, प्रायः असम्भव है। रजनी ने कहा था कि यदि पत्नी और पति बुद्धिमान हों तो कुछ ही काल में एक-दूसरे को समझकर अपने-आपको एक-दूसरे के अनुकूल कर लेते हैं। इसका अर्थ वह यह समझी थी कि पति बुद्धिमान ढूँढ़ना चाहिये। वह यदि अनुकूल न भी हो तो भी पत्नी के भावों को समझ उसका आदर करने लगेगा।
इस पर वह विचार करती थी कि क्या वह बुद्धिमान है? रजनी ने एक बात और कही थी कि यहाँ तो विवाह नहीं हो सकेगा। इससे वह समझी थी कि कुछ और बात भी है, जिसके कारण रजनी वहाँ विवाह न हो सकने के विषय में बात कह रही थी।
उसी सायंकाल रामाधार ने रजनी से साधना का पत्र माँगा। साधना ने लिखा था–‘‘जीजाजी! आने का पत्र मिलने पर मैं शर्मिष्ठा मौसी से मिलने गयी थी। उस समय शिवकुमार भी वहाँ बैठा था। जब मैंने आप के पत्र के विषय में कहा तो शिवकुमार बोल उठा, ‘बहन! राधा को देखा है। वह बहुत सुन्दर है, परन्तु सौन्दर्य मात्र से ही तो जीवन नहीं चलता। संसार को चलाने के लिये धन एक प्रबल शक्ति है। अतः मैं सबसे पहले यह जानना चाहता हूँ कि मेरे संसार को चलाने के लिये तुम्हारे जीजाजी कितना सहयोग देंगे?’’
‘‘मेरा कहना था, ‘कुछ तो देंगे ही। इस पर भी बता नहीं सकती कि कितना दे सकेगे।’
‘तो साधना बहन! पहले उनसे यह पता कर लो तो ठीक है।’
‘तुम ही बता दो। तुम उनसे क्या आशा करते हो?’
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