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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


जब दो दिन तक वह नहीं लौटा तो फिर उसकी खोज आरम्भ हुई। इरीन के घर जाकर उसकी माँ से पता किया तो उसने डाँट बता दी। पश्चात् बम्बई से उसकी सूचना मिली और खर्च भेजने पर वह लखनऊ लौटा।

जब विष्णु लखनऊ पहुँचा तो उसने बता दिया कि वह पाँच सौ माँ का और तीन सौ साधना बहन का ले गया है। साधना को रुपयों की आवश्यकता नहीं पड़ी थी, इसलिए उसने संदूकची खोली ही नहीं थी और उसको चोरी का भान नहीं था।

विष्णु की सूचना पा उसने संदूकची खोली तो तीन सौ रुपयों के अतिरिक्त एक सोने का लॉकेट और एक जोड़ा कर्ण फूल भी चोरी जा चुके थे।

उसने पृथक् में विष्णु से पूछा तो उसने बता दिया कि उसने एक लड़की को भेंट में दे दिये हैं।

इस घटना से माँ और बेटी इन्द्र की पक्षपाती हो गई थीं और पिता अपने पुत्र के पत्र में। महादेव दोनों में तटस्थ था।

महादेव के घर कोई सन्तान न होने के कारण वह तो क्लब के जीवन में लीन रहने लगा था और उसकी पत्नी विरक्त भाव से पूजा-पाठ में लीन रहने लगी। अतः घर में उठी आँधी दोनों के सिर पर से निकल गयी और वे पत्थर की चट्टान की भाँति ही स्थिर अपने स्थान पर अडिग रहे।

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