लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


साधना की स्थिति सबसे भिन्न थी। वह अपने पति से हर प्रकार से संतुष्ट थी। उसका पति उसको अपना पूर्ण वेतन दे देता था और जब कभी लखनऊ आता था तो इसके साथ पूर्ण प्रेम का व्यवहार रखता था। इस पर भी वह लखनऊ डिवीजन का एग्जेक्टिव इन्जीनियर था और महीने में बीस दिन दौरे पर रहता था। हैडक्वार्टर लखनऊ में होने के कारण उसने पत्नी को उसके पिता के घर में रखा हुआ था।

साधना के एक लड़का हुआ था और तत्पश्चात् कोई सन्तान नहीं हुई। वह अपनी चिकित्सा कराती रहती थी, परन्तु उस लड़के के पश्चात् गर्भाधान ही नहीं हुआ। कई डॉक्टरों की राय थी कि दोष उसके पति में हैं। जब वह अपने पति अयोध्याप्रसाद से डॉक्टरों की सम्मति बताकर चिकित्सा कराने के लिए कहती हो वह कह देता, ‘‘क्या एक सन्तान पर्याप्त नहीं? फिर तुमको मुझसे असंतुष्ट रहने में कारण है क्या?’’

एक बार अयोध्याप्रसाद के पिता को किसी ने बताया कि उसके लड़के ने लखनऊ डिवीजन के प्रत्येक जिला नगर में एक-एक प्रेमिका रखी हुई है और अपनी राय का बहुत-सा भाग उन पर व्यय कर देता है। उन दिनों साधना ससुराल में थी। श्वसुर ने बहू से पूछा तो उसने कह दिया, ‘‘वे पूर्ण वेतन मुझको दे देते हैं और स्वयं केवल भत्ते पर ही अपना खर्च चलाते हैं।’’

‘‘श्वसुर ने कहा, ‘‘बेटा! तुम मेरे लड़के से प्रसन्न हो? तुमको किसी प्रकार की उससे शिकायत तो नहीं?

‘‘पिताजी! वे बहुत अच्छे हैं। मैं उनसे प्रसन्न हूँ।’’

श्वसुर को इस उत्तर से भी सन्तोष नहीं हुआ और उसने सुनी बात बताकर पूछा, ‘‘अब बताओ, क्या कहती हो?’’

‘मुझको पत्नी का भाग मिल रहा है। शेष मैं नहीं जानती।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book