उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
पंडित ज्ञानेन्द्र सीतापुर में उसके श्वसुर के पड़ोसी और उसके मित्र थे। पंडितजी की स्त्री धार्मिष्ठादेवी से उसकी मित्रता थी। लखनऊ में भी वह उनके घर आती-जाती थी। ज्ञानेन्द्रदत्त को वह मौसाजी और धर्मिष्ठादेवी को मौसी कहकर पुकारा करती थी। महेन्द्र साधना को बहन कहकर सम्बोधन करता था।
महेन्द्र के विषय में साधना के बहुत अच्छे विचार थे। पंडित ज्ञानेन्द्रदत्त के लिये उसके मन में श्रद्धा थी। अतः उसने महेन्द्र की सगाई के लिये राधा का प्रस्ताव रख दिया। इस पर शर्मिष्ठादेवी राधा को चोरी-चोरी देखने गयी और राधा उसकी माँ और परिवार के अन्य सदस्यों के विषयों में बहुत अच्छे विचार बनाकर लौट आयी। अब शर्मिष्ठा महेन्द्र और राधा के सम्बन्ध के लिये लालायित रहने लगी।
उस काल के प्रायः हिन्दू परिवारों की भाँति ज्ञानेन्द्र के परिवार के लोग भी एक लड़के को अंग्रेजी पढ़ाकर अपनी आर्थिक अवस्था सुधारने की इच्छा रखते थे। पंडित ज्ञानेन्द्रदत्त ने अपने ढ़ग से महेन्द्र के नौकरी करने की बात को समझाने का यत्न किया। महेन्द्र ने अपनी नौकरी को एक अस्थायी स्थिति बताकर अपनी योजना की झलक दिखा दी। परंतु जो कुछ ज्ञानेन्द्रदत्त ने कहा था और जो कुछ रामाधार ने समझा था, वह महेन्द्र के कथन से समता नहीं रखता था। इससे रामाधार को महेन्द्र एक अपरिपक्व बुद्धि का लड़का समझ आया। अतः उसने साधना को कह दिया, ‘‘विवाह से पूर्व उसको अभी बहुत-कुछ सीखना शेष है।’’
कुछ दिन पश्चात् साधना जब शर्मिष्ठा से मिलने आयी तो उसने सब बात, जो महेन्द्र और रामाधार के बीच हुई थी, बता दी।
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