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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘तो ठीक है, लड़की और लड़की के माता-पिता अच्छे आदमी हैं। वे भी शेखुपुरा के ही रहने वाले हैं। दो वर्ष से मेरे पीछे पड़ रहे थे। अब तक तो मैं उन्हें तुम्हारी परीक्षा की बात कहकर टाल रहा था। कहो तो बात पक्की करूं।’’

‘‘कौन हैं वे लोग?’’

‘‘ठेकेदारी करते हैं और बाराखम्भा रोड नई दिल्ली में रहते हैं।’’

‘‘नाम क्या है?’’

‘‘बाप का तो नाम है फकीरचन्द्र और उसकी लड़की का नाम है महेश्वरी। इस समय वह लेड़ी इर्विन कॉलेज में पढ़ रही है।’’

‘‘कौन-सी कक्षा में है?’’

‘‘तेरहवीं या चौदहवीं में होगी। मुझे ठीक प्रकार स्मरण नहीं। लड़की ने तुमको देखा हुआ है।’’

‘‘मैं भी एक दिन उसको देख लूं।’’

‘‘तो फिर कह दूं उसके पिता को?’’

‘‘इसकी क्या आवश्यकता है।’’

‘‘नहीं तो देखोगे किस प्रकार?’’

मदन हंस पड़ा और बोला, ‘‘बाबा! यह विद्या तो आजकल कॉलेज में पढ़ाई जाती है।’’

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