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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘क्या पढ़ाई जाती है?’’

‘‘यही कि अपनी पत्नी किस प्रकार ढूंढी जाती है।’’

‘‘कदाचित् लड़की ने भी इसी प्रकार तुमको देखा हो।’’

‘‘यह तो वही बता सकती है। पर बाबा! मैं तुम्हें एक सप्ताह के बाद बताऊंगा कि उसके साथ विवाह हो सकता है अथवा नहीं।’’

‘‘क्यों हो क्यों नहीं सकेगा? जब उसके माता-पिता कहते हैं तो हो जायेगा?’’

‘‘मेरी बात तो अभी तक किसी को विदित नहीं है। वह मैं लड़की को देखकर ही बताऊंगा।’’

‘‘तो क्या तुम कह रहे हो कि तुम विवाह भी करोगे अथवा नहीं?’’ गोपीचन्द को सन्देह-सा होने लगा था।

‘‘हां।’’

‘‘अच्छी बात है। देखकर बताना।’’

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