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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।

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अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने अथवा सिनेमा देखने से हिन्दुस्तानी समाज में द्रुत गति से अन्तर पड़ता जा रहा था। यह तथाकथित प्रगति विद्यार्थी-समाज में तो तीव्रवेग से हो रही थी।

मदन ने दस विभिन्न स्थानों पर नौकरी के लिए आवेदन किया हुआ था, साथ ही शिक्षा मन्त्रालय को भी एक आवेदन-पत्र उच्च शिक्षा ग्रहणार्थ विदेश जाने के लिए भेजा हुआ था।

इन आवेदनपत्रों के उत्तर की प्रतीक्षा करते हुए यह विवाह का प्रश्न बीच में आ टपका था। उसने मन में विचार कर लिया कि इस ‘नौकरी’ के लिए यदि इन्टरव्यू कर लिया जाय तो अधिक उपयुक्त होगा। यह विचार कर वह लाला फकीरचन्द्र की कोठी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा। पहले ही दिन घर की एक लड़की के दर्शन हो गये। वह अपनी दो सहेलियों के साथ निकली तो तीनों में से उसको ढूंढ निकालना उसके लिए कठिन नहीं हुआ। वह सड़क के पार खड़ा हो उनकी गतिविधि देखने लगा।

घर की लड़की अपनी सहेलियों के साथ निकली और उनको विदा कर कोठी में जाने लगी तो मदन ने विचार किया कि कदाचित् यही वह लड़की होगी, जिनको देखने के लिए वह आया है। फिर भी वह अपने इस अनुमान का कोई स्वतन्त्र प्रमाण प्राप्त करना चाहता था। इस समय लड़की की दृष्टि उस पर पड़ गई। वह उसके वहां खड़े होने को केवल एक साधारण घटना मानकर कोठी के अन्दर चली गई। वह भीतर जाते हुए विचार कर रही थी कि वह वहां पर क्यों खड़ा होगा।

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