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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


बात यहीं समाप्त हो गई। किन्तु जब वह होस्टल की ऊपरी मंजिल पर, जहां कि उसका कमरा था, जा रहा था तो सीढ़ियां चढ़ते हुए एक अन्य लड़की उसको ऊपर से उतरती दिखाई दी। मदन को ऊपर चढ़ते देख वह उसके लिए मार्ग छोड़कर खड़ी हो गई। मदन ने धन्यवाद किया और ऊपर चला गया। अपने कमरे में पहुंच वह आराम करने की तैयारी कर रहा था कि किसी ने द्वार खटखटाया। उसने वैसे ही कह दिया, ‘कम इन।’

मदन ने देखा कि यह वही लड़की है जिसने सीढ़ियों पर उसके लिए मार्ग छोड़ा था। उसने द्वार खोलकर पूछा, ‘‘क्या मैं भीतर आ सकती हूं?’’

मदन ने उठकर उसका स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आइये।’’

एक कुर्सी पर बैठते हुए वह पूछने लगी, ‘‘मिशिगन जा रहे हैं?’’

‘‘जी।’’

‘‘मैं भी वहीं जा रही हूं।’’

‘‘मुझे तो कल दस बजे वाले प्लेन में सीट मिली है।’’

‘‘मुझे भी उसी में मिली है।’’

‘‘फिर तो निश्चित ही मैं आशा कर सकता हूं कि मार्ग में एक अच्छे व्यक्ति का साथ मिल जायेगा।’’

‘‘अवश्य। मुझे रैस्टोरां की बैरा से विदित हुआ कि आप मिशिगन जा रहे हैं। इसी से आपसे परिचय बढ़ाने के लिए मैं चली आई हूं। वहां आप कहां ठहरेगें?’’

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