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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


उसने मुस्कान के साथ ही उत्तर देते हुए कहा, ‘‘आपको तो योरोप के मार्ग से जाना चाहिए था। उस रास्ते से सस्ता पड़ता।’’

‘‘उधर से सीट नहीं मिल सकी थी।’’

वह लड़की कार्यलय में गई और वहां से अमेरिका का एक मानचित्र ले आई। उसको सामने बिछाकर उसने समझाते हुए कहा, ‘‘मिशिगन यहां से ढाई हजार किलोमीटर पड़ेगा।’’

मदन ने धन्यवाद किया तो उस लड़की ने उससे पूछा, ‘‘आप किस देश के निवासी हैं?’’

‘‘इण्डिया का।’’

‘‘मैं भी यही समझी थी।’’

‘‘तो क्या यहां हिन्दुस्तानी बहुत आते हैं?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है। यहां तो चीनी और जापानी अधिक आते हैं। परन्तु आपके मुख पर कुछ है जो अधिकांश हिन्दुस्तानी युवकों के मुख पर होता है। ‘इट इज़ आलवेज़ प्लैजैंट टू लुक एट।’

‘‘वह क्या होता है?’’

‘‘मैं उसका वर्णन नहीं कर सकती।’’

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