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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


मदन को उससे स्वायिनी का पता भी दे दिया था। उसका पता था–मिस्टर बी. स्वायिनी, एम. बी. बी. एस.–एम. डी., फिजि–शियन, टेंथ एवेन्यू नं. ३॰१, मिशिगन। उसका पूरा नाम पढ़कर मदन ने समझा था कि यह कोई जर्मन व्यक्ति होगा। नाम के अक्षर कुछ इसी प्रकार के से थे।

जर्मनों के लिए, विशेष रूप में, पश्चिमी जर्मनी में रहने वालों के लिए मदन के मन में कोई आदर का भाव नहीं था। वह विचार करता था कि ये लोग रूस के इतने समीप रहते हुए भी अमेरिका के वाग्जाल में फंसे हुए हैं। वह उनको महामूर्ख समझता था। कभी वे हिटलर के मोहजाल में ग्रस्त थे और अब अमेरिका और इंग्लैण्ड के मोहजाल में ग्रस्त हैं।

इस प्रकार के विचारों की पृष्ठभूमि के आधार पर तो वह उस व्यक्ति से स्वयं मिलने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं था। उसको यह बताया गया था कि अमेरिका में होटलों में रहना बहुत महंगा पड़ता है। फिर भी विचार करता था कि किसी सस्ते और अच्छे स्थान के मिलने तक तो उसको होटल में ही ठहरना चाहिए।

जिस जैट प्लेन में वह बैठा था, वह सीधा न्यूयार्क जाता था। उसको सानफ्रांसिस्को में वह प्लेन छोड़कर मिशिगन के लिए अन्य प्लेन पकड़ना था। जब वह वहां उतरा तो उसको विदित हुआ कि मिशिगन जाने के लिए अब अगले दिन ही जहाज मिलेगा। अतः अगले दिन ही जहाज मिलेगा। अतः वह हवाई जहाज के होस्टल में ही ठहर गया।

जब वह खाना खाने के लिए डाइनिंग हॉल में गया तो उसको कुछ ऐसा आभास हुआ कि जो लड़की खाना परस रही है, वह उसको बड़े ध्यान से देख रही है और जब दोनों की आंखे मिलती हैं तो वह मुस्कुरा देती है। मदन ने तो इसको केवल शिष्टाचार मात्र ही समझा। उसने उससे पूछा, ‘‘मिशिगन यहां से कितनी दूर है?’’

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