उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
|
88 पाठक हैं |
इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
लक्ष्मी को उसके घर से गये लगभग १४ वर्ष बीत चुके थे। मदन अब उसकी रूपरेखा को भी भूल चुका था। केवल इतना स्मरण था कि अम्मा ने उसको पाप की उत्पत्ति कहा था। तब तो वह पाप के जन्म की बात समझ नहीं सका था। परन्तु अब सब कुछ समझता था। इस समय उसको अपने मन की बात, जो वह महेश्वरी से अन्तिम दिन करने का विचार रखता था, स्मरण हो आई। उससे पाप की सन्तान हो सकती थी। वह यह स्मरण कर कांप उठा।
अब महेश्वरी को अपने साथ अपनी सहेली को लाना उसको भला प्रतीत हो रहा था। उस समय तो उसके मन में आ रहा था कि अमेरिका जाकर वह उसको गालियों से परिपूर्ण पत्र लिखेगा, किन्तु अब वह घृणा विलुप्त हो गई थी। टेकियो के हवाई अड्डे पर उसने महेश्वरी के लिए एक लम्बी चिट्ठी लिखी और डाक में डाल दी। पत्र में उसने गुरनाम कौर का भी उल्लेख किया। उसने लिखा–‘‘उस दिन तुम उसको अपने साथ लाई थीं और उसके आने के लिये उसका धन्यवाद करती होगी। मैंने तुम्हारी सहेली को गालियां भरा पत्र लिखने की बात कही थी। किन्तु इस समय जब मैं पत्र लिखने बैठा हूं तो कलम से गालियां निसृत नहीं हो पा रहीं। प्रत्युत मेरा मन उसकी प्रशंसा करने को कर रहा है। परन्तु पर-स्त्री की क्या प्रशंसा लिखूं, कैसे लिखूं, यह समझ में नहीं आ रहा। इस कारण उसको केवल ‘भाई का प्रणाम’ ही लिखता हूं।’’
गुरनाम कौर के विषय में उसने इतना ही लिखा। पत्र का शेषांश केवल महेश्वरी से ही सम्बन्धित था।
महेश्वरी के पिता ने अपने अमेरिका में स्थित अनेक मित्रों के नाम मदन को परिचय पत्र दिये थे। उसका एक मित्र शिकागो में था, दो वाशिंगटन में और एक मिशिगन में भी था। लाला फकीरचन्द्र ने यह भी कहा था कि वह मिशिगन में अपने एक परिचित मित्र बी. स्वायिनी को पत्र लिख चुका है। वह पत्र मदन के मिशिगन पहुँचने से कई दिन पूर्व उसको मिल जाना चाहिये। उसने मदन को बताया था कि वह मिशिगन एयरोड्रोम पर पहुंच कर यदि स्वायिनी को फोन कर देगा तो वह उसको लेने के लिए जायेगा।
|