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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।

द्वितीय परिच्छेद

1

अमेरिकन जैट एयर लाइन में बैठा-बैठा मदन अमेरिका में जाने के उल्लास को दबाने के लिए अपने अमेरिका जाने के इतिहास पर चिंतन करने लगा था। उसके मानस-पटल पर एक धूमिल-सी स्मृति थी कि वह एक गन्दे, अर्द्धनिर्मित, मैले मकान के बाहर मिट्टी में खेल रहा था, एक बहुत बढ़िया मोटर में दो औरतें उसके घर में आई थीं। उसकी अम्मा ने अपने घर का एक कमरा धो-पोंछ कर साफ किया हुआ था और उसमें से एक औरत एक लड़की उनको दे गई थी। उसको उस लड़की की छोटी-छोटी उंगलियों और बहुत ही छोटे लाल नाखूनों की भी स्मृति आ रही थी।

वह लड़की अच्छी सुन्दर, गौरवर्णीय, लम्बी, चुलबुली और हंसमुख थी। फिर एक दिन सहसा स्वप्नवत् वह विलुप्त भी हो गई थी। अम्मा ने बताया था कि वही औरत जो उसको छोड़ गई थी, उसे ले गई है। अम्मा ने यह भी बताया था कि वह अमेरिका जा रही है। इससे उसके मन में भी अमेरिका जाने की लालसा उत्पन्न हो गई थी।

इस लालसा की प्रेरणा से ही वह पढ़ाई में ध्यान देने लगा था। फिर वह अपनी श्रेणी में प्रथम रहने लगा। तब श्रेणी में प्रथम रहने की लालसा ही प्रेरणा बन गई और वह अमेरिका गई हुई लड़की उसके स्मृति पटल पर से उतर गई थी। आज हवाई जहाज में बैठा-बैठा उसको अपने मन में अपने अमेरिका जाने की लालसा के इतिहास का स्मरण हुआ तो उसको उस लड़की का भी स्मरण हो आया।

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