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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘मेरे बाबा के कथनानुसार सौन्दर्य की अपेक्षा शारीरिक सुदृढ़ता का महत्व अधिक है। शारीरिक सुदृढ़ता से मानसिक और उससे अधिक आत्मिक श्रेष्ठता का महत्व है।’’

‘‘मैं अपने अनुमान से यही विचार कर सकती हूं कि वह बहुत कुरूप तो नहीं होगी!’’

‘‘नहीं-नहीं, उसकी रूपरेखा साधारण ही है। इसके अतिरिक्त वह दिल्ली की सर्वश्रेष्ठ टैनिस खेलने वालों में से है। कॉलेज में पढ़ रही है तथा सदाचारिणी है।’’

यह सुना तो वह सब हंस पड़ीं।

मैकी पाल ने उठते हुए पूछा, ‘‘सायंकाल आप भ्रमणार्थ चलेंगे?’’

‘‘जाने की इच्छा तो है।’’

‘‘मैं आपको ले चलूंगी।’’

‘‘मैं आपका धन्यवाद करूंगा।’’

सायंकाल नगर भ्रमण के अवसर पर वे तीनों सुन्दरियां मदन के साथ थीं। उन्होने नगर में बाजार देखे। कुछ देर सागर तट पर भी घूमे और फिर नगर के रैस्टोरां में रात्रि का भोजन का व्यय मदन ने वहन किया था। कुछ उसका सात डालर व्यय हो गया था। मदन इतना व्यय करना तो नहीं चाहता था, परन्तु यह विचार कर कि नित्य प्रति तो ऐसा होता नहीं, वह असन्तुष्ट नहीं था।

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