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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।

2

वे तीनों अपने-अपने स्थान पर चली गईं। मदन ने भीतर से कमरे का द्वार बन्द कर वस्त्र बदले। रात्रि का परिधान धारण कर वह बिस्तर में घुसा ही था कि किसी ने उसका द्वार खटखटाया। मदन ने उठकर द्वार खोला तो देखा मिस फ्रिट्ज ‘ह्वाइट हौर्स’ की एक बोतल और गिलास लिए खड़ी थी।

‘‘कहिये, क्या बात है?’’ मदन ने पूछा।

‘‘मैं यह ले रही थी कि विचार आया कदाचित् आप इसमें मेरा साथ दे दें। इस कारण यहां चली आई हूं।’’

‘‘आपका कमरा कहां पर है?’’

‘‘नीचे की मंजिल पर दस नम्बर में।’’

‘‘मुझे नींद आ रही है। उचित यही होगा कि आप अपने कमरे में जाकर अपनी सहेलियों के साथ पान कीजिये। मैं इस समय क्षमा चाहता हूं।’’

‘‘आपने हमारे लिए इतना कुछ किया है। मैं आपका धन्यवाद करना चाहती थी। यह तो उसकी तुलना में कुछ भी नहीं है।’’

मदन ने उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही, वह अपनी बात समाप्त करते-करते कमरे के भीतर घुस आई। बोतल को एक तिपाई पर रख और स्वयं एक कुर्सी पर बैठ गिलास से शराब की सुरकियां लेने लगी। मदन इस विचित्र परिस्थिति से कुछ परेशानी अनुभव कर रहा था। वह अनुभव कर रहा था कि भारत में तो इस प्रकार की तो कोई वैश्या भी नहीं रह सकती। सायंकाल जब वे सागर तट पर एक बैंच पर बैठे थे, मदन ने अनुभव किया था कि वहां पर भी फ्रिट्ज उससे सटकर बैठ रही थी। मदन को तो उसका उक्त व्यवहार भी पसन्द नहीं था।

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