लोगों की राय

उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

88 पाठक हैं

इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


लड़की ने सामने के सेल्फ में से एक गिलास निकाला उसमें थोड़ी शराब डालकर मदन को देनी चाही। किन्तु मदन ने अस्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मैंने यह कभी नहीं पी।’’

‘‘कभी नहीं पी? वैरी स्ट्रेंज!’’

‘‘हमारे यहां अधिकाश लोग इसका सेवन नहीं करते। केवल कुछ अपवाद ही हैं जो पिया करते हैं।

‘‘परन्तु यहां तो आपको थोड़ी पीनी ही पड़ेगी।’’

‘‘यदि मैं इस समय पियूंगा तो मुझको उलटी हो जायेगी और खाया-पिया सब निकल जायेगा।’’

‘‘सत्य?’’

‘‘हां।’’

‘‘मैं तो रात इसी कमरें में सोने के विचार से आई थी।’’

‘‘उस स्थिति में तो मुझे लॉज पर रखी कुर्सी पर बैठकर रात व्यतीत करनी पड़ेगी।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि इस कमरे में एक ही बिस्तर है।’’

‘‘तो क्या आप एक ही बिस्तर पर किसी अन्य के साथ सो नहीं सकते?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book