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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


वेटर मदन को एक कमरे में ले गया और उसकी चाभी उसने मदन के हवाले कर दी। सामान मदन ने स्वयं ही उठाया हुआ था। अन्य सब लोगों ने भी इसी प्रकार किया था। मदन ने सामान रखा, कपड़े बदले। मैले कपड़े धोबी को देने के लिए उसने बैरे को बुलाने के लिए बटन दबाया और कपड़े उसको दे तथा यह कह रात सोने के पूर्व कपड़े आ जाने चाहिए, वह चाय पीने चला गया।

वह अभी होटल के रेस्टोरां में जाकर बैठा ही था कि एक लड़की आई और बोली, ‘‘क्या मैं आपकी संगति का लाभ प्राप्त कर सकती हूं?’’

‘‘हां, मैं कृतज्ञ हूंगा।’’ मदन ने मुस्कुराते हुए कहा।

वह बैठते ही अपना परिचय देने लगी, ‘‘मेरा नाम मिस इलियट है। साउथ कोन्टिनेंट रेलवे के कार्यालय में मैं क्लर्क हूं। कार्यालय से अवकाश पा, प्रायः नित्य ही यहां चाय पान के लिए आया करती हूं और फिर घूमने चली जाया करती हूं। रात का भोजन सिलविया होटल में करती हूं और फिर अपने कमरे में जाकर सो जाती हूं।’’

‘‘मुझे आपसे मिल कर बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं भारतवासी हूं। यहां विश्वविद्यालय में मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए आया हूं। अभी-अभी हवाई जहाज से पहुंचा हूं। इसी होटल में ठहरा हूं। कल विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के लिए जाऊंगा। मेरा नाम मदनस्वरूप है।’’

‘‘थैंक्यू।’’

रात मिस फ्रिट्ज के अनुभव से मदन सतर्क हो गया था। इस कारण चाय पाते हुए वह विस्तृत सूचना देने-लेने के लिए उत्सुक नहीं था। स्त्रीजाति के स्वभाव से विवश वह लड़की मौन नहीं रह सकी। वह पूछने लगी, ‘‘कैसा लगा है यह स्थान आपको?’’

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