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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘अपने देश में सर्वथा विचित्र तथा विभिन्न और कुछ सुन्दर भी।’’

‘‘इसमें विचित्रता क्या है?’’

‘‘मैं कल ग्यारह बजे के लगभग सानफ्रांसिस्को में पहुंचा था और इन बीस घंटों में मेरा चार लड़कियों से परिचय हो गया है। किन्तु अभी तक एक भी पुरुष से परिचय नहीं हुआ।’’

‘‘क्या कारण समझते है आप इसका?’’

‘‘मैं गणित का विद्यार्थी हूं और जब किसी लड़के अथवा पुरुष से मिल लूंगा तो बता सकूंगा कि इस देश में प्रतिपुरुष कितनी स्त्रियां हैं। मेरे विचार से उनकी संख्या बहुत अधिक होगी।’’

वह लड़की हंस पड़ी। फिर बोली, ‘‘गणितज्ञों के अनुमान तो ऐसे ही हुआ करते हैं। यह सर्वथा गलत बात होगी। जनसंख्या की दृष्टि से तो यहां प्रत्येक सौ पुरुष के लिए ११२ स्त्रियां हैं। यह कोई अधिक संख्या नहीं मानी जानी चाहिये। इतनी स्त्रियां प्रायः स्वाभाविक ढंग पर मेटर्निटी अवकाश पर रहती ही हैं।’’

इस पर दोनों हंस पड़े। मदन ने कहा, ‘‘दूसरी बात जो मेरे देश से भिन्न है वह यह कि लड़कियों अपने परिवार से दूर नौकरी पर रहती हैं। कल एक मिस फ्रिट्ज नाम की लड़की मिली थी। वह रहने वाली तो यहां की है और नौकरी करती है सानफ्रांसिस्को में।’’

‘‘और मैं दक्षिणी अमेरिका की ब्राजील स्टेट की रहने वाली हूं तथा यहां नौकरी करती हूं। मेरे माता-पिता तथा भाई-बहिन भी हैं। वे वहां लकड़ी का व्यापार करते हैं। परन्तु मुझे उनसे पृथक् रहने में आनन्द आता है।’’

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