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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


मदन टुकर-टुकर उसका मुख देखता रहा। उस सायंकाल वह मिस इलियट के साथ घूमता रहा। डॉक्टर साहनी के परिचय-पत्र की ओर उसका ध्यान ही नही गया। मिस पाल ने उसको यह बहुत ही सस्ता होटल बता दिया था। रात के भोजन और चाय के बिल का जब उसने भुगतान कर दिया तो मिस इलियट ने बिल देखा और अपना भाग उसने चुपचाप मदन की जेब में डाल दिया। इस पर मदन बोला, ‘‘क्यों, मैं इतने से निर्धन तो नहीं हो जाऊंगा।’’

‘‘यह इस कारण नहीं आप इतने व्यय नहीं कर सकते। वास्तव में मैं किसी युवक के ऐहसान के नीचे तब आती हूं जब मैं भी उस पर ऐहसान कर सकने की स्थिति में हूं।’’

‘‘पर यह ऐहसान लौटाने की आवश्यकता नहीं है।’’

‘‘नहीं, यह उचित नहीं है।’’

मदन को यह एक विलक्षण लड़की मिली थी। उसको विगत रात्रि में मिस फ्रिट्ज का कथन स्मरण हो आया। फ्रिट्ज ने कहा था, ‘आपने हम पर इतना कुछ व्यय किया है, इस कारण मैं उसका विनिमय देने आई हूं।

मदन इसी को तो वेश्यावृत्ति समझता था। किन्तु यहां इसको उन्नतिशीलता कहा जाता था। उसको कुछ ऐसा प्रतीत होने लगा था कि यह पागलों का संसार है।

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