उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
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अगले दिन वह विश्वविद्यालय में जा पहुंचा। पढ़ाई पन्द्रह सितम्बर से प्रारम्भ होने वाली थी। आज सात सितम्बर थी। इस पर भी उसने विश्वविद्यालय के कार्यलय में जाकर यह सूचना दे दी कि वह आ गया है। विश्वविद्यालय केहोस्टल के विषय में जब उसने पूछा तो क्लर्क ने बताया ‘‘होस्टल में स्थान तो है, परन्तु उसमें होस्टल के अनुशासन में रहना पड़ेगा।’’
‘‘तो क्या वह बहुत कड़ा है?’’
‘‘हां, कुछ तो है ही। उसमें व्यय भी अधिक होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि होस्टल के किचिन का व्यय भी देना पड़ेगा।’’
‘‘कितना देना पड़ेगा?’’
‘‘पन्द्रह डालर मासिक तो यूनिवर्सिटी का शुल्क है। इतना ही होस्टल का शुल्क होगा। इसके अतिरिक्त पचास डालर मासिक भोजन का शुल्क होगा।’’
‘‘अन्य स्थानों से तो यह सस्ता ही होगा?’’
‘यदि आपकी यह धारणा है तो १४ तारीख को तीन मास का शुल्क जमा करा जाइये। १५ तारीख को आपको स्थान मिल जायेगा।’’
मदन ने यह सब सूचना प्राप्त करने के अनन्तर मन में निश्चित किया कि वह विश्वविद्यालय छात्रावास में ही रहेगा। वह कार्यालय से बाहर आ मिनर्वा होटल मे जानें का विचार कर ही रहा था कि कार्यालय से एक लड़की निकली और उसके समीप खड़ी हो पूछने लगी, ‘‘अभी कहां ठहरे हैं आप?’’
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