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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


मदन ने उसके मुख पर देखा। वह उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। मदन को यह देख सानफ्रांसिस्को में उस लड़की का मुस्कुराना स्मरण हो आया। इस पर उसने भी मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘अभी तो मैं ‘मिनर्वा’ में ठहरा हूं।’’

‘‘क्या आप ‘इण्डिया’ से आये हैं?’’

‘‘हां।’’

‘‘आपका नाम मिस्टर मदन है?’’

‘‘जी।’’

‘‘आपके विषय मेरे पापा को नई दिल्ली से पत्र आया है। वे आपकी प्रातीक्षा कर रहे है।’’

‘‘मैं आज सायंकाल आने वाला था।’’

‘‘चलिये, मैं आपको अपनी गाड़ी में ले चलती हूं।’’

‘‘कार में?’’

‘‘हां।’’

‘‘किन्तु आपके पिताजी के नाम जो परिचय-पत्र मैं लाया हूं, वह तो होटल में ही रखा है?’’

‘‘तो चलिये, पहले होटल चलेंगे। तब मैं आप को अपने पापा के क्लिनिक में ले जाऊंगी।’’

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