लोगों की राय

उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

88 पाठक हैं

इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं?’’

‘‘मुझे लैसले साहनी कहते हैं।’’

‘‘मेरे पत्र पर आप के पापा का नाम इस प्रकार लिखा था कि मैं तो उसको जर्मन समझ बैठा था। यह तो एक लड़की ने, जो स्वयं को आपकी सहेली कहती है, बताया कि आप हिन्दुस्तानी हैं। किन्तु आपका नाम भी तो हिन्दुस्तानी नहीं है?’’

फिर भी हम हिन्दुस्तानी ही हैं।’’

बातें करते हुए वे बाहर कार के समीप पहुंच गये थे। मिस सहानी कार का द्वार खोल स्टीयरिंग पर जा बैठी और साथ की सीट पर मदन को बैठाने के लिए संकेत कर दिया। मोटर चलते हुए मिस सहानी ने बताया, ‘‘कैनार्ड फार्म से मिस पाल का फोन आया था कि उसके ग्राण्ड पा बीमार हैं और उसके पापा को बुलाया था। साथ ही उसने यह भी बताया था कि एक हिन्दुस्तानी युवक मिस्टर मदन मिनर्वा होटल में ठहरा है। उसके पास पापा के नाम का पत्र है।

‘‘पापा ने फार्म की ओर जाते हुए मुझसे कहा कि मैं आपका पता करूं। मैंने मिनर्वा में टेलीफोन किया तो विदित हुआ कि आपके कमरे ताला लगा हुआ है। मैंने अनुमान लागाया कि आपविश्वविद्यालय में जानकारी प्राप्त करने के लिए आयें होंगे। इस कारण यहां चली आई हूं।’’

‘‘आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके पापा क्या फार्म से लौट आये होंगे?’’

‘‘फार्म नगर से तो दस मील के अन्तर पर है और हमारे घर से वह पन्द्रह मील पड़ता है। आधा घण्टा जाने में और आधा आने में। आधा घण्टा वहां बैठने में। वे ठीक नौ बजे गये थे और अब बारह बज रहे हैं, उनको इस समय तक वापस आ जाना चाहिये।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book