उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘तो ऐसा करें, होटल से पत्र लेकर किसी रैस्टोरां में लंच करेंगे और तदनन्तर आपके पापा से मिलेंगे।’’
‘‘हम, मेरा अभिप्राय है, पापा, मम्मी और मैं, सभी होटल में ही खाना खाते हैं।’’
‘‘घर पर खाना नहीं बनता क्या?’’
‘‘नहीं, महंगा पड़ता है। मम्मी स्वयं बना नहीं सकतीं। मैं एक फिल्म स्टूडियो में काम करती हूं। पापा बहुत व्यस्त व्यक्ति हैं। नौकर बहुत महंगा पड़ता है। इस कारण हम अपने-अपने कार्य में, जो जहां पर होता है, वहां खाना खा लेता हैं।
‘‘आप फिल्म स्टूडियो में कलाकार हैं अथवा कुछ अन्य कार्य करती हैं?’’
‘‘वहां मैं असिस्टैंट फोटोग्राफर का कार्य करती हूं। हमारे तीन मुख्य फोटोग्राफर हैं। उनके अधीन पांच असिस्टैंट हैं। हमारा कार्य तो प्रायः फिल्म को डेवलप और वाश करना होता है। यह टैक्नीकी कार्य है।’’
‘‘क्या वेतन मिलता है आपको वहां पर?’’
‘‘एक सहस्त्र डालर प्रतिमास के हिसाब से। महीने में बीस दिन और दिन के नौ घण्टा कार्य करना पड़ता है। कभी ओवर टाइम भी लग जाता है तब दस डालर प्रति घण्टे के हिसाब से मिल जाता है।
‘‘मैं यही कह रही थी कि आप कॉलेज-होस्टल में रहकर क्या करेंगे। या तो किसी प्राइवेट घर में रहियेगा या किसी होटल में। यूनिवर्सिटी के समय के अतिरिक्त यदि कहीं काम काम मिल गया तो दस-बीस डालर नित्य मिल जाने सहज ही हैं।’’
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