उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘परन्तु मुझे तो तीन सहस्त्र डालर प्रतिवर्ष की छात्रवृत्ति मिल रही है?’’
‘‘तो क्या हुआ? वह सब-की-सब बच सकती है। मेरे पापा मुझे दो सौ डालर जेब खर्च देते हैं। मैं एक सहस्त्र डालर कमाती हूं। इस पर भी उनसे खर्चा ले लेती हूं, वह सब बच जाता है।’’
‘‘आप तो बहुत ही भाग्यशालिनी हैं।’’
‘‘मैं स्वयं को बहुत परिश्रमी समझती हूं। मेरे बॉस मेरे कार्य से बहुत प्रसन्न हैं।’’
‘‘आज क्या आपको अवकाश है?’’
‘‘नहीं, आज मेरी ड्यूटी रात के आठ बजे से है।’’
‘‘रात-भर आप वहां पर रहेंगी?’’
‘‘मैं रात का भोजन खाकर। ठीक आठ बजे वहां पहुंच जाऊंगी। एक बजे से दो बजे तक विश्राम होता है। दो बजे से प्रातः छः बजे तक फिर काम होगा। छः बजे मैं घर पहुंच स्नान कर, चाय पानी पी, सो जाती हूं। प्रायः सात बजे से बारह बजे तक सोती हूं। आजमिस पाल का टेलीफोन आया तो मैं आपको देखने के लिए चली आई। मुझे बड़ी उत्सुकता थी, इस कारण सो नहीं सकी।’’
‘‘आप भाग्यशालिनी हैं अथवा नहीं, यह तो आप ही जानें। पर मैं अश्वय हूं। जो आप मेरे प्रति इतनी रुचि प्रकट कर रही हैं।’’
‘‘उसने आपके विषय में कुछ कहा था। इससे आपको देखने की रुचि हो गई।’’
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