उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
|
88 पाठक हैं |
इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘निश्चित ही कोई शिकायत की होगी। मिस साहनी! मैं अमेरिका में सर्वथा नवीन हूं, इससे यदि मुझसे कुछ अनुचित व्यवहार हो गया हो तो मैं उससे क्षमा मांग लूंगा।’’
‘‘नहीं-नहीं, उसने निन्दा नहीं, प्रत्युत प्रशंसा की थी।’’
‘‘तब तो उसका धन्यवाद करना चाहिये।’’
इस समय तक वे होटल में पहुंच चुके थे। मिस साहनी ने कार खड़ी की और दोनों ऊपर मदन के कमरे में जा पहुंचे। इस समय साढ़े बारह बजे थे। भोजन का समय एक बजे होता था। इस कारण वे आधा घण्टा व्यतीत करने के लिए उस कमरे में बैठकर बातें करने लगे। मदन आश्चर्य कर रहा था कि मिस पाल ने क्या प्रशंसा की होगी। उसको विश्वास था कि मिस फ्रिट्ज ने रात को उसके कमरे में घुस आने की घटना के विषय में अपनी सहेलियों को कुछ नहीं बताया होगा। मिस पाल ने पांच घण्टे तक उसके समीप हवाई जहाज में बैठे हुए अनेक विषयों पर वार्तालाप किया था। महात्मा गांधी से लेकर स्वामी विवेकानन्द तक बातें हुई थीं। परन्तु उसने उस घटना की ओर न तो संकेत ही किया था, न ही मदन को असभ्य समझ उससे घृणा व्यक्त की थी। फिर भी वह अपनी प्रशंसा की बात, चाहे वह कुछ भी हो, स्वयं पूछना नहीं चाहता था।
बात आरम्भ करते हुए मिस साहनी ने पूछा, ‘‘तो क्या आपको यह जानने में रुचि नहीं है कि मिस पाल आपके विषय में क्या कहती थी?’’
‘‘कोई निन्दा की बात होती तो अवश्य सुनता ताकि भविष्य में उस बात को स्वयं में से निकालने का यत्न कर पुनः किसी के सम्मुख लज्जित होने से बच जाता।’’
|