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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘एक्सक्यूज मी, मिस साहनी! मैं ‘बूवी’ के अर्थ नहीं समझा।’’

इस प्रश्न पर लड़की का मुख लाल हो गया। फिर कुछ विचार कर उसने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘आपको स्मरण है कि सानफ्रांसिसको में यह शब्द आपको किसी लड़की ने कहा था?’’

‘‘हां, कहा तो था। परन्तु उस समय भी मैं इसके अर्थ नहीं समझ पाया था।’’

‘‘सत्य?’’

‘‘हां?’’

‘‘उसने आपसे ‘बैड शेयर’ करने के लिए कहा था?’’

‘‘हां, परन्तु मैंने उसे उस पवित्र बिस्तर के योग्य नहीं समझा था।’’

मिस साहनी गम्भीर हो गई। उसने बात बदल दी। उसने कहा,

‘‘फिर भी उसकी पहली बात तो सर्वथा सत्य है। आप वास्तव में एक सुन्दर युवक हैं। अमेरिका में आप लड़कियों को अपने पीछे भागता हुआ पायेंगे।’’

बात बदलने के लिए मदन वहां से उठा और अपने सूटकेस में से मिस्टर साहनी के नाम का पत्र निकाल, उसे दिखा, पूछने लगा, ‘‘यह आपके पिताजी का ही नाम है न?’’

‘‘हां, मैं रख लूं यह?’’

‘‘रख लीजिये।’’

मिस साहनी ने पत्र अपने हैण्ड बैग में रख लिया और घड़ी में समय देख बोली, ‘‘चलिए, भोजन का समय हो गया है।’’

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