उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
इस विवेचना को सुनकर मदन और डॉक्टर हंस पड़े। मदन ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘मम्मी! मैं समझता हूं कि आप स्त्रियों के उस पांचवें भाग में नहीं हैं।’’
‘‘हां, इस समय तो नहीं। परन्तु कौन जानता है कि किस समय मैं भी उनकी श्रेणी में आ जाऊं। लैसले के पिता धनी होते जा रहे हैं और मैं भी देख रही हूं कि सुन्दर युवा लड़कियों की दृष्टि इन पर भी पड़ने लगी है। किसी भी दिन वे उनके जाल में ग्रस्त हो मुझे तलाक दे सकते हैं।’’
इस पर तीनों हंसने लगे। मदन ही गम्भीर बना शान्त बैठा रहा। हंसकर डॉक्टर ने कहा, ‘‘मदन! यह तुमको उल्लू बना रही है। इसकी एक भी बात पर विश्वास न करना। मैं इतनी प्यारी लड़की के रहते हुए, इसकी मां को छोड़ने का विचार तो स्वप्न में नहीं कर सकता।’’
‘‘मैं भी यही समझता हूं। पापा! मैं आपको मूर्ख नहीं मानता।’’
डॉक्टर ने बात बदल दी। उसने फिर वहीं बात पूछी, ‘कितनी उन्नति कर ली है तुम्हारे देश ने?’’
‘‘तो आपका देश नहीं रहा वह अब?’’
‘‘नहीं, मैं अब यहां का नागरिक बना लिया गया हूं।’’
‘‘और लैसले अब अमेरिकन लड़की बन गई है?’’
‘‘हम तीनों अमेरिकन नागरिक बन गये हैं। हमको वोट का अधिकार प्राप्त है। मैं चाहूं तो यहां की कांग्रेस के लिए निर्वाचन में भाग ले सकता हूं।’’
‘‘पण्डित नेहरू के अनथक प्रयत्नों से भारत अमेरिका बनने के मार्ग पर अग्रसर हो गया है।’’
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