उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘यहां अमेरिका में तो उन्नति का मापदण्ड चोर और डाकू हैं। यदि चोरी पांच-दस डालर की हो तो हम समझते हैं कि लोग निर्धन हो रहे हैं। जितनी बड़ी चोरी होगी उतना ही देश अधिक समृद्ध जायेगा।’’
डॉक्टर साहनी के देश की उन्नति-विषयक इस नवीन मापदण्ड के विषय में सुन विस्मय में मदन उसका मुख देखता रह गया। उसको विस्मत देख डॉक्टर समझने लगा। उनकी बातें हो रही थीं कि मिसेज साहनी और मिस साहनी वहां पर आ गई। डॉक्टर ने उनसे मदन का परिचय कराया। मिसेज साहनी ने पूछा, ‘‘लाला फकीरचन्द की पत्नी तो प्रसन्न हैं?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘उनकी लड़की महेश्वरी?’’
‘‘वह भी बहुत आनन्द से है।’’
‘‘होनी ही चाहिये। तुम सदृश पति के साथ कौन प्रसन्न नहीं रह सकेगा?’’
मदन समझ रहा था कि जो कुछ मिस पाल ने मिस साहनी से कहा था और मिस साहनी ने उससे कहा था, उसी का समर्थन मिसेज साहनी ने किया है। इससे उसको कुछ लज्जा की अनुभूति होने लगी। उसने कहा, ‘‘मम्मी! विवाह तो भाग्य से होता है, इसमें मैं अथवा कोई अन्य कारण नहीं होता।’’
‘‘हां, यहां भी रोमन कैथोलिक यही मानते हैं। परन्तु वे स्वयं और उसकी लड़कियां भी पति ढूंढ़ने के लिए दौड़ लगाते फिरते हैं। एक बात यहां और भी देखोगे मदन! यहां प्रति सौ पुरुषों पर बारह स्त्रियों की संख्या अधिक है और फिर यहां तलाक भी होते रहते हैं। अतः ऐसा अनुमान है कि स्त्रियों की पूर्ण संख्या का पांचवा भाग सदा पति की तलाश में व्यस्त रहता है। तेरह-चौदह वर्ष की लड़की से लेकर पचपन-साठ वर्ष की स्त्रियों तक सब इस ‘हसबैंड फाइंडिग’ की दौड़ में व्यस्त हैं।’’
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