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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


मिस सहानी को कमरे में वापस आने में दस मिनट लग गये। जब वह लौटकर आई तो उस समय मदन एक लड़की का नग्न चित्र देख रहा था। मिस साहनी ने जब उसको वह चित्र देखते पाया तो उसने उसके हाथ से एलबम छीन ली।

मदन ने उसके मुख पर देखा तो वह तांबे की भांति लाल हो रहा था। उसने क्षमा मांगते हुए कहा, ‘‘क्षमा कीजिये। अकस्मात् ही यह चित्र निकल आया था। किसका था वह चित्र?’’

मिस साहनी ने एलबम आलमारी में रखते हुए कहा, ‘‘चलिये, पापा आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।’’

मदन उक्त प्रश्न पूछकर मिस साहनी का संकोच मिटाने का यत्न किया था। वैसे तो वह पहचान गया था कि चित्र उसका ही है। साथ ही उसने मिस साहनी के मुख पर लालिमा भी देख ली थी।

जब मदन डॉ. साहनी के सम्मुख गया तो वह अपने मित्र लाला फकीरचन्द का पत्र पढ़ रहा था। पत्र पढ़कर जब उसने दृष्टि उठाई तो उसे मदन और अपनी लड़की सामने खड़े दिखाई दिये। डॉक्टर ने अपनी लड़की से कहा, ‘‘जाओ, अपनी मम्मी को बुलाकर ले आओ।’’

मिस साहनी के चले जाने पर डॉक्टर ने मदन को अपने समीप ही कुर्सी पर बैठा लिया और लाला फकीरचन्द के विषय में पूछने लगा। उसने दिल्ली, नई दिल्ली तथा वहां के अन्य परिवर्तनों के विषय में भी पूछा। फिर उसने मदन से कहा, ‘‘मुझे हिन्दुस्तान से आये तेरह वर्ष हो चुके हैं। तब से मुझे वहां का कोई समाचार नहीं मिला। सुना है हिन्दुस्तान ने बहुत उन्नति कर ली है।’’

‘‘जी हां।’’

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