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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


नीला ने मुस्कुराते हुए पूछ लिया, ‘‘तो प्रेम का समबन्ध किस बात से है?’’

‘‘विवाह से। तुम मेरी पत्नी हो। तुम्हारा मुझसे प्रेम है। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि तुम्हारा यौन सम्बन्ध भी मुझसे बने ही।’’

‘‘मैं इसे गलत मानती हूं।’’

‘‘इसीलिए तो कहता हूं कि या तो तुम जैसी भावना लड़की में न रहे या मेरे जैसा स्वभाव मदन का हो। अब क्या होगा, यह कहना कठिन है।

‘‘मदन अच्छा और सुन्दर युवक है। उसके लिए लैसली में आकर्षण भी स्वाभाविक बात है। परन्तु उसकी सगाई फकीरचन्द की लड़की से हो चुकी है। यदि सगाई टूट गई और लैसली से विवाह हो गया तो फकीरचन्द नाराज हो जायेगा और यदि मदन लैसली को यहां रोती छोड़ कर भारत चला गया तो लड़की का जीवन बरबाद हो जायेगा।’’

‘‘उसमें हम क्या कर सकते हैं? यदि यहां किसी अमेरिकन लड़की से सम्बन्ध बना ले तो फिर फकीरचन्द क्या करेगा? यहां की तो हवा में ही वासना भरी हुई है। इसका ज्ञान तो फकीरचन्द को होना ही चाहिए। वह तो यहां रह गया है।’’

लैसली सायं आठ बजे होटल में खाना खा स्टूडियो में जा पहुंचती थी। आठ से प्रातः पाँच बजे तक वह स्टूडियो में कार्य किया करती थी। साढ़े पांच बजे वह घर पहुंच प्रातः की चाय तथा अल्पाहार लेकर सो जा जाया करती थी। मध्याह्न बारह बजे तक वह सोती रहती थी। तदनन्तर शौच स्नानादि से निवृत्त हो एक बजे लंच को लिए होटल चली जाया करती थी। वहां खाना खा और शॉपिंग कर वह पांच बजे तक घर आ जाती थी। शाम की चाय वह घर पर ही लेती थी। चाय कभी वह बनाती कभी उसकी मां। चाय पीने के अनन्तर वह या तो कुछ पढ़ लेती थी अथवा आराम करती थी।

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