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प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580

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मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


शेख ईदू बोले, चाकरी चाहे छोटी हो या बड़ी हो, मुदा चाकती ही है। अल्लाह ने घर में सब कुछ दिया है तो काहे कोऊ की बन्दगी उठाई जाय।

गोबर चौकीदार बोला, मुदा भैया हुद्दा बड़ा भारू रहै। कई जिला भरे माँ अस बड़वार हुद्दा कोऊ नहीं पायेस।

भोजू कुरमी बोले, हुद्दा तो भारू रहै मुदा कितने गरीबन कै गला रेतै का परत रहा। सैकरन के जेहल पठै दिये होई हैं। ई लड़ाई मा गरीबन का मार-मार केतना करजा दियाबै के परा होई। दौड़ा करै जात रहे होई हैं तो केतना बेगार लेका परत रहा होई। हज्जारन किसान का बेदखली, कुड़की अखराज इनके हाथन भवा होई। अब घर मां रहि हैं तो ई पापन से गला छूट जाई।

गोबर–रुआब केतना रहै, हुकूमत केतनी रहै।

भोजू–रुआब हुद्दा से नहीं होत है, रुआब भलमनसी से होत है, विद्या से होत है। रामभरोसे पंडित का देख के काहे सब कोउ खटिया से उठके पैलगी करत हैं। थानेदार आवत हैं तो उनकी खातिर सेर भर आटा देत सब का केतना अखरत है, नाहीं तो सासतरी जी जे के घर अपने चार-छः चेलन सहित जाय परत है, ऊ आपन भाग सराहत है। जिला में एक-से-एक हाकिम परे हैं। महात्मा जी के बरोबर है कोऊ का रुआब? आज हुकुम दें तो मनई आग माँ कूदै का तैयार हैं।

रामभरोसे–सन्तबिलास बाबू नाहीं देख परत हैं।

हरिबिलास–कालेज में वकालत पढ़ रहे हैं।

रामभरोसे–ई विद्या तो भैया उनका नाहक पढ़ावत हौं। बड़ा-बड़ा कुकरम करै का परत है। ओकिलन का मारा जिला तबाह होइगवा, सब मारेन लड़ाय-लड़ाय के देश का खोख कै दिहेन।

ईदू–बाबू, तुम अब आपन जमीन छोड़ाय लेव और मजे से खेती करो। चाकरी बहुत दिन किहो, अब कुछ दिन गृहस्थी का मजा लेव उतना सुख तो न पैहो पर चोला आनन्द रही। परदेसवाँ जौन कमात रहे होइहो तौन सब कपड़ा लत्ता, कुरसी-मेज, मेवा-मिठाई माँ उड़ जाता रहा होई। २५-३० रु. का तो दूध पी जात रहा होई हौ,३०-४० रु. से कम घर का किराया न परत रहा होई। तुम्हार कुल खेत छूट जाय तो मजे से चार हर की खेती होय लागे।

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