लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

154 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


हरिबिलास ने संकोच से मुस्काराकर कहा, रुपये कहाँ से लाऊँ? सब आदमियों ने उनकी और संदिग्ध भाव से देखा, मानो वह कोई अनोखी बात कर रहे हैं। अन्त में भोजू बोला, का कहत हौ भैया, कौन बहुत रुपैया हैं? तीन-चार हजार तो तुम्हरे सन्दूक के एक कोने में धरा होई। इतनी बड़ी तलब पावत रह्यो, नजर-नियाज लेते रहे होई हौ, इतना सब कहाँ उड़ायौ?

हरि–मैंने रिश्वत कभी नहीं ली। मासिक वेतन में खर्च ही कठिनता से चलता था, बचत कहाँ से होती?

भोजू–बेटा, तब तो तुम्हारी चाकरी गुनाह बेलज्जत है। नाहीं अस खक्ख का होइ हौ, दस बीस हजार तो होबै करो।

हरि–नहीं चचा, सच मानों, मैं बिलकुल खाली हाथ हूँ।

भोजू–तब गुजर बसर कसस होई?

हरि–ईश्वर मालिक है।

भोजू–दूनों लड़कन अब को बहुत सुशील देख परत हैं। पहले तो कोऊ से बातें न करत रहे।

यही बातें हो रही थीं कि गाँव के जमींदार ठाकुर करनसिंह अपने दो मुसाहिबों के साथ हाथी पर आते दिखाई दिये। लोग तुरन्त चारपाइयों से उठ बैठे। हरिबिलास के सामने ऐसे कितने ही जमींदार नित्य सलाम करने आया करते थे। पर करनसिंह को देखकर वह भी खड़े हो गये। हाथी रुका। करनसिंह उतर पड़े और हरिबिलास का हाथ पकड़ कर उन्हें चारपाई पर बैठाकर आप भी बैठ गये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book