कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
ताँगेवाले ने पूछा–कहाँ चलूँ?
जीवनदास–जहाँ चाहो।
ताँगेवाला–स्टेशन चलूँ?
जीवनदास–वहीं सही।
ताँगेवाला–छोटी लैन चलूँ या बड़ी लैन?
जीवनदास–जहाँ गाड़ी जल्दी मिल जाय।
ताँगेवाले ने उन्हें कौतूहल से देखा। परिचित था, बोला–आपकी तबीयत अच्छी नहीं है, क्या और कोई साथ न जायगा?
जीवनदास ने जवाब दिया–नहीं, मैं अकेला ही जाऊँगा।
ताँगेवाला–आप कहाँ जाना चाहते हैं।
जीवनदास–बहुत बातें न करो। यहाँ से जल्दी चलो।
ताँगेवाले ने घोड़े को चाबुक लगाया और स्टेशन की ओर चला। जीवनदास वहाँ पहुँचते ही ताँगे से कूद पड़े और स्टेशन के अंदर चले। ताँगेवाले ने कहा–पैसे?
जीवनदास को अब ज्ञात हुआ कि मैं घर से कुछ नहीं ले कर चला, यहाँ तक कि शरीर पर वस्त्र भी न थे। बोले–पैसे फिर मिलेंगे।
ताँगेवाला–आप न जाने कब लौटेंगे।
जीवनदास–मेरा जूता नया है, ले लो।
ताँगेवाले का आश्चर्य और भी बढ़ा, समझा इन्होंने शराब पी है, अपने आपे में नहीं है। चुपके से जूते लिये और चलता हुआ।
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