कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
फिटन चली। जीवनदास को प्रायः सभी चीजें नयी मालूम होती थीं। न वे बाजार, न वे गली-कूचे, न वे प्राणी थे। युगांतर-सा हो गया था। निदान उन्हें एक रमणीक बंगला-सा दिखायी पड़ा, जिसके द्वार पर मोटे अक्षरों में अंकित था–
‘‘जीवनदास-पाठशाला’’
जीवनदास ने विस्मित हो कर पूछा–क्या है?
लखनदास ने कहा–माता जी ने आपके स्मृति-रूप यह पाठशाला खोली है। कई लड़के छात्रवृत्ति पाते हैं!
जीवनदास का दिल और भी बैठ गया। मुँह से एक ठंडी साँस निकल आयी।
थोड़ी देर के बाद फिटन रुकी, लखनदास उतर पड़े। नौकरों ने असबाब उतारना शुरू किया। जीवनदास ने देखा, एक पक्का दो-मंजिला मकान था उनके पुराने खपरैलवाले घर का कोई चिह्न न था। केवल एक नीम का वृक्ष बाकी था। दो कोमल बालक ‘बाबू जी’ कहते हुए दौड़े और लखनदास के पैरों से लिपट गये। घर में एक हलचल-सी मच गयी। दीवानखाने के पीछे एक सुन्दर पुष्पवाटिका थी। जीवनदास ऐसे चकित हो रहे थे मानों कोई तिलिस्म देख रहे हों।
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