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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ

बैर का अंत

रामेश्वरराय ने अपने बड़े भाई के शव को खाट से नीचे उतारते हुए छोटे भाई से बोले–तुम्हारे पास कुछ रुपये हों तो लाओ, दाह-क्रिया की फिक्र करें, मैं बिलकुल खाली हाथ हूँ।

छोटे भाई का नाम विश्वेश्वरराय था। वह एक जमींदार के कारिंदा थे, आमदानी अच्छी थी। बोले, आधे रुपये मुझसे ले लो। आधे तुम निकालो।

रामेश्वर–मेरे पास रुपये नहीं हैं।

विश्वेश्वर–तो फिर इनके हिस्से का खेत रेहन रख दो।

रामे०–तो जाओ, कोई महाजन ठीक करो। देर न लगे। विश्वेश्वरराय ने अपने मित्र से कुछ रुपये उधार लिये, उस वक्त का काम चला। पीछे फिर कुछ रुपये लिये, खेत की लिखा-पढ़ी कर दी। कुल पाँच बीघे ज़मीन थी, ३००) रु० मिले। गाँव के लोगों का अनुमान है कि क्रिया-कर्म में मुश्किल से १००) रु० उठें होंगे; पर विश्वेश्वरराय ने षोड़शी के दिन ३०१) का लेखा भाई के सामने रख दिया। रामेश्वर राय ने चकित हो कर पूछा–सब रुपये उठ गये?

विश्वे०–क्या में इतना नीचा हूँ कि करनी के रुपये भी कुछ उठा रखूँगा! किसको यह धन पचेगा।

रामे०–नहीं, मैं तुम्हें बेईमान नहीं बनाता, खाली पूछता था।

विश्वे०–कुछ शक हो तो जिस बनिये से चीजें ली गयी हैं, उससे पूछ लो।

साल-भर बाद एक दिन विश्वेश्वरराय ने भाई से कहा– रुपये हों तो लाओ, खेत छुड़ा लें।

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