लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

260 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


रामे०–मेरे पास रुपये कहाँ से आये? घर का हाल तुमसे छुपा थोड़े ही है।

विश्वे०–तो मैं सब रुपये देकर जमीन छोड़ाये लेता हूँ। जब तुम्हारे पास रुपये हों, आधा दे कर अपनी जमीन मुझसे ले लेना।

रामे०–अच्छी बात है, छुड़ा लो।

३० साल गुजर गये। विश्वेश्वरराय जमीन को भोगते रहे; उसे खाद-गोबर से खूब सजाया।

उन्होंने निश्चय कर लिया था कि यह जमीन न छोड़ूँगा। मेरा तो इस पर मोरूसी हक हो गया। अदालत से भी कोई नहीं ले सकता। रामेश्वरराय ने कई बार यत्न किया कि रुपये दे कर अपना हिस्सा ले लें; पर तीस साल में कभी १५० रु० जमा न कर सके।

मगर रामेश्वरराय का लड़का जागेश्वर कुछ सँभल गया। वह गाड़ी लादने का काम करने लगा था और इस काम में उसे अच्छा नफा भी होता था। उसे अपने हिस्से की रात-दिन चिंता रहती थी। अंत में उसने रात-दिन श्रम करके यथेष्ट धन बटोर लिया और एक दिन चाचा से बोला–काका, अपने रुपये ले लीजिए। मैं अपना नाम चढ़वा लूँ।

विश्वे०–अपने बाप के तुम्हीं चतुर बेटे नहीं हो। इतने दिनों तक कान न हिलाये, जब मैंने सोना बना लिया तब हिस्सा बाँटने चले हो? तुमसे माँगने तो नहीं गया था।

विश्वे०–तो अब जमीन न मिलेगी।

रामे०–भाई का हक मार कर कोई सुखी नहीं रहता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book