कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
विश्वे०–जमीन हमारी है। भाई की नहीं।
जागे०–तो आप सीधे न दीजिएगा।
विश्वे०–न सीधे दूँगा, न टेढ़े से दूँगा। अदालत करो।
जागे०–अदालत करने की मुझे सामर्थ्य नहीं है; पर इतना कहे देता हूँ कि जमीन चाहे मुझे न मिले; पर आपके पास न रहेगी।
विश्वे०–यह धमकी जा कर किसी और को दो।
जागे०–फिर यह न कहियेगा कि भाई हो कर वैरी हो गया।
विश्वे०–एक हजार गाँठ में रख कर जो कुछ जी में आये, करना।
जागे०–मैं गरीब आदमी हजार रुपये कहाँ से लाऊँगा; पर कभी-कभी भगवान दीनों पर दयालु हो जाते हैं।
विश्वे०–मैं इस डर से बिल नहीं खोद रहा हूँ।
रामेश्वरराय तो चुप ही रहा पर जागेश्वर इतना क्षमाशील न था। वकील से बातचीत की। वह अब आधी नहीं; पूरी जमीन पर दाँत लगाये हुए था।
मृत सिद्धेश्वरीराय के एक लड़की तपेश्वरी थी। अपने जीवन-काल में वे उसका विवाह कर चुके थे। उसे कुछ मालूम ही न था कि बाप ने क्या छोड़ा और किसने लिया। क्रिया-कर्म अच्छी तरह हो गया; वह इसी में खुश थी। षोडशी में आयी थी। फिर ससुराल चली गयी। ३० वर्ष हो गये, न किसी ने बुलाया, न वह मौके आयी। ससुराल की दशा भी अच्छी न थी। पति का देहांत हो चुका था। लड़के भी अल्प वेतन पर नौकर थे। जागेश्वर ने अपनी फूफी को उभारना शुरू किया। वह उसी को मुद्दई बनाना चाहता था।
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