लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

260 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


विश्वे०–जमीन हमारी है। भाई की नहीं।

जागे०–तो आप सीधे न दीजिएगा।

विश्वे०–न सीधे दूँगा, न टेढ़े से दूँगा। अदालत करो।

जागे०–अदालत करने की मुझे सामर्थ्य नहीं है; पर इतना कहे देता हूँ कि जमीन चाहे मुझे न मिले; पर आपके पास न रहेगी।

विश्वे०–यह धमकी जा कर किसी और को दो।

जागे०–फिर यह न कहियेगा कि भाई हो कर वैरी हो गया।

विश्वे०–एक हजार गाँठ में रख कर जो कुछ जी में आये, करना।

जागे०–मैं गरीब आदमी हजार रुपये कहाँ से लाऊँगा; पर कभी-कभी भगवान दीनों पर दयालु हो जाते हैं।

विश्वे०–मैं इस डर से बिल नहीं खोद रहा हूँ।

रामेश्वरराय तो चुप ही रहा पर जागेश्वर इतना क्षमाशील न था। वकील से बातचीत की। वह अब आधी नहीं; पूरी जमीन पर दाँत लगाये हुए था।

मृत सिद्धेश्वरीराय के एक लड़की तपेश्वरी थी। अपने जीवन-काल में वे उसका विवाह कर चुके थे। उसे कुछ मालूम ही न था कि बाप ने क्या छोड़ा और किसने लिया। क्रिया-कर्म अच्छी तरह हो गया; वह इसी में खुश थी। षोडशी में आयी थी। फिर ससुराल चली गयी। ३० वर्ष हो गये, न किसी ने बुलाया, न वह मौके आयी। ससुराल की दशा भी अच्छी न थी। पति का देहांत हो चुका था। लड़के भी अल्प वेतन पर नौकर थे। जागेश्वर ने अपनी फूफी को उभारना शुरू किया। वह उसी को मुद्दई बनाना चाहता था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book