कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
जागे०–किसी बैद-हकीम को बुलाने भेजना चाहते होंगे। शायद बुखार तेज हो गया हो।
रामे०–यहाँ किसे इतनी फुरसत है। सारा गाँव तो उनका हितू है, जिसे चाहें भेज दें।
जागे०–हर्ज ही क्या है। जरा जा कर सुन आऊँ?
रामे०–जा कर थोड़े उपले बटोर लाओ, चूल्हा जले, फिर जाना। ठकुरसोहाती करनी आती हो तो आज यह दशा न होती।
जागेश्वर ने टोकरी उठाई और हार की तरफ चला कि इतने में विश्वेश्वरराय के घर रोने की आवाजें आने लगीं। उसने टोकरी फेंक दी और दौड़ा चाचा के घर में जा पहुँचा। देखा तो उन्हें लोग चारपाई से नीचे उतार रहे थे। जागेश्वर को ऐसा जान पड़ा, मेरे मुँह में कालिख लगी हुई है। वह आँगन से दालान में चला आया और दीवार से मुँह छिपा कर रोने लगा। युवावस्था आवेशमय होती है; क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी हो जाती है।
विश्वेश्वरराय के तीन बेटियाँ थीं। उनके विवाह हो चुके थे। तीन पुत्र थे, वे अभी छोटे थे। सबसे बड़े की उम्र १० वर्ष से अधिक न थी। माताजी जीवित थीं। खानेवाले तो चार थे, कमानेवाला कोई न था। देहात में जिसके घर में दोनों जून चूल्हा जले, वह धनी समझा जाता है। उसके धन के अनुमान में भी अत्युक्ति से काम लिया जाता है। लोगों का विचार था कि विश्वेश्वरराय ने हज़ारों रुपये जमा कर लिये हैं; पर वहाँ वास्तव में कुछ न था। आमदनी पर सबकी निगाह रहती है खर्च को कोई नहीं देखता। उन्होंने लड़कियों के विवाह खूब दिल खोल कर किये थे। भोजन-वस्त्र में मेहमानों और नातेदारों के आदर-सत्कार में उनकी सारी आमदनी गायब हो जाती थी। अगर गाँव में अपना रोब जमाने के लिए दो-चार सौ रुपये का लेन-देन कर लिया था, तो कई महाजनों का कर्ज भी था। यहाँ तक कि छोटी लड़की के विवाह में अपनी जमीन गिरों रख दी थी।
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