कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
साल-भर तक विधना ने ज्यों-त्यों बच्चों का भरण-पोषण किया, गहने बेच कर काम चलाती रही ; पर जब वह आधार भी न रहा तब कष्ट होने लगा। निश्चय किया कि तीनों लड़कों को तीनों कन्याओं के पास भेज दूँ। रही अपनी जान उसकी क्या चिंता। तीसरे दिन भी पाव भर आटा मिल जायगा तो दिन कट जायँगे। लड़कियों ने पहले तो भाइयों को प्रेम से रखा ;किंतु तीन महीने से ज्यादा कोई न रख सकी। उनके घरवाले चिढ़ाते थे और अनाथों को मारते थे। लाचार हो माता ने लड़कों को बुला लिया।
छोटे-छोटे लड़के दिन-दिन भर भूखे रह जाते। किसी को कुछ खाते देखते तो घर में जाकर माँ से माँगते। फिर माँ से माँगना छोड़ दिया। खाने वालों ही के सामने जाकर खड़े हो जाते और क्षुधित नेत्रों से देखते। कोई तो मुट्ठी भर चबेना निकाल कर देता; पर प्रायः लोग दुत्कार देते थे।
जाड़ों के दिन थे। खेतों में मटर की फलियाँ लगी हुई थीं। एक दिन तीनों लड़के खेत में घुस कर मटर उखाड़ने लगे। किसान ने देख लिया, दयावान आदमी था। खुद एक बोझा मटर उखाड़ कर विश्वेश्वरराय के घर पर लाया और ठकुराइन से बोला–काकी, लड़कों को डाँट दो किसी के खेत में न जाया करें। जागेश्वरराय उसी समय अपने द्वार पर बैठ कर चीलम पी रहा था, किसान को मटर लाते देखा–तीनों बालक पिल्लों की भाँति पीछे-पीछे दौड़े चले आते थे। उसकी आँखें सजल हो गयीं। घर में जा कर पिता से बोला–चाची के पास अब कुछ नहीं रहा, लड़के भूखों मर रहे हैं।
रामे०–तुम त्रिया-चरित्र नहीं जानते। यह सब दिखावा है। जन्म भर की कमाई कहाँ उड़ गयी?
जागे०–अपना काबू चलते हुए कोई लड़कों को भूखों नहीं मार सकता।
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