कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
नाग-पूजा
प्रातःकाल था। आषाढ़ का पहला दौंगड़ा निकल गया था। कीट-पतंग चारों तरफ रेंगते दिखायी देते थे। तिलोत्तमा ने वाटिका की ओर देखा तो वृक्ष और पौधे ऐसे निखर गये थे जैसे साबुन से मैंले कपड़े निखर जाते हैं। उन पर एक विचित्र आध्यात्मिक शोभा छायी हुई थी मानों योगीवर आनंद में मग्न पड़े हों। चिड़ियों में असाधारण चंचलता थी। डाल-डाल, पात-पात चहकती फिरती थीं। तिलोत्तमा बाग में निकल आयी। वह भी इन्हीं पक्षियों की भाँति चंचल हो गयी थी। कभी किसी पौधे की देखती, कभी किसी फूल पर पड़ी हुई जल की बूँदों को हिला कर अपने मुँह पर उनके शीतल छींटे डालती। लाल बीरबहूटियाँ रेंग रही थीं। वह उन्हें चुनकर हथेली पर रखने लगी। सहसा उसे एक काला वृहत्काय साँप रेंगता दिखायी दिया। उसने चिल्ला कर कहा–अम्माँ, नागजी आ रहे हैं। लाओ थोड़ा-सा दूध उनके लिए कटोरे में रख दूँ।
अम्माँ ने कहा–जाने दो बेटी, हवा खाने निकले होंगे।
तिलोत्तमा–गर्मियों में कहाँ चले जाते हैं? दिखायी नहीं देते।
माँ–कहीं जाते नहीं बेटी, अपनी बाँबी में पड़े रहते हैं।
तिलोत्तमा–और कहीं नहीं जाते?
माँ–बेटी, हमारे देवता हैं और कहीं क्यों जायँगे? तुम्हारे जन्म के साल से ये बराबर यहीं दिखायी देतें हैं। किसी से नहीं बोलते। बच्चा पास से निकल जाय, पर जरा भी नहीं ताकते। आज तक कोई चुहिया भी नहीं पकड़ी।
तिलोत्तमा–तो खाते क्या होंगे?
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