कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
260 पाठक हैं |
मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
माँ–बेटी, यह लोग हवा पर रहते हैं। इसी से इनकी आत्मा दिव्य हो जाती है। अपने पूर्वजन्म की बातें इन्हें याद रहती हैं। आनेवाली बातों को भी जानते हैं। कोई बड़ा योगी जब अहंकार करने लगता है तो उसे दंडस्वरूप इस योनि में जन्म लेना पड़ता है। जब तक प्रायश्चित पूरा नहीं होता, तब तक वह इस योनि में रहता है। कोई-कोई तो सौ-सौ, दो-दो सौं वर्ष तक जीते रहते हैं।
तिलोत्तमा–इसकी पूजा न करो तो क्या करें।
माँ–बेटी, कैसी बच्चों की-सी बातें करती हो। नाराज हो जायँ तो सिर पर न जाने क्या विपत्ति आ पड़े। तेरे जन्म के साल पहले-पहल दिखायी दिये थे। तब से साल में दस-पाँच बार अवश्य दर्शन दे जाते हैं। इनका ऐसा प्रभाव है कि आज तक किसी के सिर में दर्द तक नहीं हुआ।
कई वर्ष हो गये। तिलोत्तमा बालिका से युवती हुई। विवाह का शुभ अवसर आ पहुँचा। बारात आयी, विवाह हुआ, तिलोत्तमा के पति-गृह जाने का मुहूर्त आ पहुँचा।
नयी वधू का श्रृंगार हो रहा था। भीतर-बाहर हलचल मची हुई थी, ऐसा जान पड़ता था भगदड़ पड़ी हुई है। तिलोत्तमा के हृदय में वियोग-दुःख की तरंगें उठ रही हैं। वह एकांत में बैठकर रोना चाहती है। आज माता-पिता, भाईबंद, सखियाँ-सहेलियाँ सब छूट जायँगी। फिर मालूम नहीं कब मिलने का संयोग हो। न जाने अब कैसे आदमियों से पाला पड़ेगा। अम्माँ की आँखें एक क्षण भी न थमेंगी। मैं एक दिन के लिए कहीं, चली जाती थी तो वे रो-रोकर व्यथित हो जाती थीं। अब यह जीवनपर्यन्त का वियोग कैसे सहेंगी? उनके सिर में दर्द होता था तो जब तक मैं धीरे-धीरे न मलूँ, उन्हें किसी तरह कल-चैन ही न पड़ती थी। बाबू जी को पान बनाकर कौन देगा? मैं जब तक उनका भोजन न बनाऊँ, उन्हें कोई चीज रुचती ही न थी? अब उनका भोजन कौन बनायेगा? मुझसे इनको देखे बिना कैसे रहा जायगा? यहाँ जरा सिर में दर्द भी होता था तो अम्माँ और बाबूजी घबरा जाते थे। तुरंत बैद-हकीम आ जाते थे। वहाँ न जाने क्या हाल होगा। भगवान् बंद घर में कैसे रहा जायगा? न जाने वहाँ खुली छत है या नहीं। होगी भी तो मुझे कौन सोने देगा? भीतर घुट-घुट कर मरूँगी। जगने में जरा देर हो जायगी तो ताने मिलेंगे। यहाँ सुबह को कोई जगाता था, तो अम्माँ कहती थीं, सोने दो। कच्ची नींद जाग जायगी तो सिर में पीड़ा होने लगेगी। वहाँ व्यंग सुनने पड़ेंगे, बहू आलसी है, दिन भर खाट पर पड़ी रहती है। वे (पति) तो बहुत सुशील मालूम होते हैं। हाँ, कुछ अभिमान अवश्य है। कहीं उनका स्वाभाव निठुर हुआ तो…?
|