कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
बौड़म–वही जो आपको बनिये को थाने में ले जाने का है। अब यह घी भी थाने जाएगा।
मौलव– (सिटपिटा कर) सबके घर में थोड़ी बहुत चीज रखी ही रहती है। कसम कुरान शरीफ़ की, मैं अभी तुम्हारे वालिद के पास जाता हूँ, आज तक गाँव भर में किसी ने मुझ पर ऐसा इलजाम नहीं लगाया था।
बनिया–मौलवी साहब आप जाते कहाँ हैं? चलिए हमारा-आपका फैसला थाने में होगा। मैं एक न मानूँगा। कहलाने को मौलवी, दीनदार, ऐसे बनते हैं कि देवता ही हैं। पर घर में चीज रख कर दूसरों को बेईमान बनाते हैं। यह लम्बी दाढ़ी धोखा देने के लिए बढ़ायी है?
मगर मौलवी साहब न रुके। बनिये को छोड़ कर खलील के बाप के पास चले गये, जो इस इस वक्त शर्म से बचने का सहज बहाना था।
तब खलील ने अहीर से कहा–क्यों बे, तू भी थाने जा रहा है? चल मैं भी चलता हूँ। तेरे घर से यह सेर भर खली लेता आया हूँ।
अहीर ने मैलवी साहब की दुर्गति देखी तो चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं, बोला–भैया जवानी की कसम है, मुझे मौलवी साहब ने सिखा दिया था।
खलील–दूसरे के सिखाने से तुम किसी के घर में आग लगा दोगे? खुद तो बच्चा दूध में आधा पानी मिला-मिला कर बेचते हो, मगर आज तुमको इतनी मुटमरदी सवार हो गयी कि एक भले आदमी तो तबाह करने पर अमादा हो गये। खली उठा कर घर में रख ली, उस पर बनिये से कहते को कि कम तौला।
बनिया–भैया, मेरी लाख रुपये की इज्जत बिगड़ गयी। मैं थाने में रपट किये बिना न मानूँगा।
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