कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
अहीर–साहू जी, अबकी माफ करो, नहीं तो कहीं का न रहूँगा।
तब खलील ने मुंशी जी से कहा–कहिए जनाब, आपकी कलाई खोलूँ या चुपके से घर की राह लीजिएगा।
मुंशी–तुम बेचारे मेरी कलई क्या खोलोगे। मुझे भी अहीर समझ लिया है कि तुम्हारी भपकियों में आऊँगा।
खलील–(लड़के से) क्यों बेटा, तुम शक्कर ले कर सीधे घर चले गये थे?
लड़का–(मुंशी जी को सशंक नेत्रों से देख कर) बताऊँगा।
मुंशी–लड़कों को जैसा सिखा दोगे वैसा कहेंगे।
खलील–बेटा, अभी तुमने मुझसे जो कुछ कहा था, वही फिर से कह दो।
लकड़ा–दादा मारेंगे।
मुंशी–क्या तूने रास्ते में शक्कर फाँक ली थी।
लड़का रोने लगा।
खलील–जी हाँ, इसने मुझसे खुद कहा; पर आपने उससे तो पूछा नहीं, बनिये के सिर हो गये। यही शराफत है।
मुंशी–मुझे क्या मालूम था कि उसने रास्ते में यह शरारत की?
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